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"सात कविताएँ-4 / लाल्टू" के अवतरणों में अंतर

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मेरे लिए भी कोई सोचता है
 
मेरे लिए भी कोई सोचता है

11:58, 11 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण

मेरे लिए भी कोई सोचता है
अँधेरे में तारों की रोशनी में उसे देखता हूँ
दूर खिड़की पर उदास खड़ी है. दबी हुई मुस्कान
जो दिन भर उसे दिगन्त तक फैलाए हुए थी
इस वक़्त बहुत दब गई है ।

अनगिनत सीमाओं पार खिड़की पर वह उदास है ।
उसके ख़यालों में मेरी कविताएँ हैं । सीमाएँ पार
करते हुए गोलीबारी में कविताएँ हैं लहूलुहान ।

वह मेरी हर कविता की शुरुआत ।
वह काश्मीर के बच्चों की उदासी ।
वह मेरा बसन्त, मेरा नवगीत, वह मुर्झाई-सी ।