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<Poem>
धान जब भी फूटता है गाँव में
एक बच्चा दुधमुँहा:किलकारियाँ भरता हुआ
आ लिपट जाता हमारे पाँव में।
फैल जाती है सिघाड़े की लतर-सी
पीर मन की :छेंकती है द्वारतोड़ते किस तरह :मौसम के थपेड़े
जानती कमला नदी की धार
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