डिठौना{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}
'''डिठौना '''
<poem>
जब भी काजल आँजा
लाल की आँखों में
उजाले उजले भाल पर टीप दिया
डिठौना...
डाहती बुरी नज़रों से
ग़लचौरा-बतकही जी-भर की
मनासेधुओं का नैंनैन-मटक्का भी झेलाखेत-खलिहानों में मजूरी कराते करते हुए भी
निश्चिन्त रही सारे दिन,
बबुआ खेलता रहा
घुटनों-हथेलियों से लिसढ़कर
यात्रा करता रहा
झरबेरियों के जंगल में,
कई बार साँप छूकर चला गया
गोज़र-बिच्छी उसके बदन पर रेंग गए
डिठौना...
गालों पर असंख्य चुम्बन अंकित किए
हथेलियाँ को कानों के पास घुमाकर
उसकी चिरायु की कामना की
और दे दो इसे
अभयदान!
(समकालीन भारतीय साहित्य, सं. अरुण प्रकाश, मार्च, 2008)</poem>