भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
आठूं पोर अड़ीकतां बीते दिन ज्यूँ मास
दरसन दे, अब बादली मुरधर नै मत तास
कोरां कोरां धोरियाँ डून्गा-डून्गा डेर
आव रमां ए बादली, ले-ले मुरधर ल्हेर
</poem>