"माँ / भाग २ / मुनव्वर राना" के अवतरणों में अंतर
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मुनव्वर राना |संग्रह=माँ / मुनव्वर राना}} {{KKPageNavigation |पीछे= |...) |
Bohra.sankalp (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=माँ / मुनव्वर राना}} | |संग्रह=माँ / मुनव्वर राना}} | ||
{{KKPageNavigation | {{KKPageNavigation | ||
− | |पीछे= | + | |पीछे=माँ / भाग १ / मुनव्वर राना |
|आगे=माँ / भाग ३ / मुनव्वर राना | |आगे=माँ / भाग ३ / मुनव्वर राना | ||
|सारणी=माँ / मुनव्वर राना | |सारणी=माँ / मुनव्वर राना | ||
}} | }} | ||
− | + | <poem> | |
इस चेहरे में पोशीदा है इक क़ौम का चेहरा | इस चेहरे में पोशीदा है इक क़ौम का चेहरा | ||
− | |||
चेहरे का उतर जाना मुनासिब नहीं होगा | चेहरे का उतर जाना मुनासिब नहीं होगा | ||
− | |||
अब भी चलती है जब आँधी कभी ग़म की ‘राना’ | अब भी चलती है जब आँधी कभी ग़म की ‘राना’ | ||
− | |||
माँ की ममता मुझे बाहों में छुपा लेती है | माँ की ममता मुझे बाहों में छुपा लेती है | ||
− | |||
मुसीबत के दिनों में हमेशा साथ रहती है | मुसीबत के दिनों में हमेशा साथ रहती है | ||
− | |||
पयम्बर क्या परेशानी में उम्मत छोड़ सकता है | पयम्बर क्या परेशानी में उम्मत छोड़ सकता है | ||
− | |||
पुराना पेड़ बुज़ुर्गों की तरह होता है | पुराना पेड़ बुज़ुर्गों की तरह होता है | ||
− | |||
यही बहुत है कि ताज़ा हवाएँ देता है | यही बहुत है कि ताज़ा हवाएँ देता है | ||
− | |||
किसी के पास आते हैं तो दरिया सूख जाते हैं | किसी के पास आते हैं तो दरिया सूख जाते हैं | ||
− | |||
किसी के एड़ियों से रेत का चश्मा निकलता है | किसी के एड़ियों से रेत का चश्मा निकलता है | ||
− | |||
जब तक रहा हूँ धूप में चादर बना रहा | जब तक रहा हूँ धूप में चादर बना रहा | ||
− | |||
मैं अपनी माँ का आखिरी ज़ेवर बना रहा | मैं अपनी माँ का आखिरी ज़ेवर बना रहा | ||
− | |||
देख ले ज़ालिम शिकारी ! माँ की ममता देख ले | देख ले ज़ालिम शिकारी ! माँ की ममता देख ले | ||
− | |||
देख ले चिड़िया तेरे दाने तलक तो आ गई | देख ले चिड़िया तेरे दाने तलक तो आ गई | ||
− | |||
मुझे भी उसकी जदाई सताती रहती है | मुझे भी उसकी जदाई सताती रहती है | ||
− | |||
उसे भी ख़्वाब में बेटा दिखाई देता है | उसे भी ख़्वाब में बेटा दिखाई देता है | ||
− | |||
मुफ़लिसी घर में ठहरने नहीं देती उसको | मुफ़लिसी घर में ठहरने नहीं देती उसको | ||
− | |||
और परदेस में बेटा नहीं रहने देता | और परदेस में बेटा नहीं रहने देता | ||
− | |||
अगर स्कूल में बच्चे हों घर अच्छा नहीं लगता | अगर स्कूल में बच्चे हों घर अच्छा नहीं लगता | ||
− | |||
परिन्दों के न होने पर शजर अच्छा नहीं लगता | परिन्दों के न होने पर शजर अच्छा नहीं लगता | ||
+ | </poem> |
17:21, 14 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
इस चेहरे में पोशीदा है इक क़ौम का चेहरा
चेहरे का उतर जाना मुनासिब नहीं होगा
अब भी चलती है जब आँधी कभी ग़म की ‘राना’
माँ की ममता मुझे बाहों में छुपा लेती है
मुसीबत के दिनों में हमेशा साथ रहती है
पयम्बर क्या परेशानी में उम्मत छोड़ सकता है
पुराना पेड़ बुज़ुर्गों की तरह होता है
यही बहुत है कि ताज़ा हवाएँ देता है
किसी के पास आते हैं तो दरिया सूख जाते हैं
किसी के एड़ियों से रेत का चश्मा निकलता है
जब तक रहा हूँ धूप में चादर बना रहा
मैं अपनी माँ का आखिरी ज़ेवर बना रहा
देख ले ज़ालिम शिकारी ! माँ की ममता देख ले
देख ले चिड़िया तेरे दाने तलक तो आ गई
मुझे भी उसकी जदाई सताती रहती है
उसे भी ख़्वाब में बेटा दिखाई देता है
मुफ़लिसी घर में ठहरने नहीं देती उसको
और परदेस में बेटा नहीं रहने देता
अगर स्कूल में बच्चे हों घर अच्छा नहीं लगता
परिन्दों के न होने पर शजर अच्छा नहीं लगता