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− | + | मन की मन में ही रही¸ स्वयं | |
− | + | हो गए उसी में निराकार ! | |
− | उनको प्रणाम! | + | उनको प्रणाम ! |
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− | + | रह–रह नव–नव उत्साह भरे; | |
− | + | पर कुछ ने ले ली हिम–समाधि | |
− | + | कुछ असफल ही नीचे उतरे ! | |
− | उनको प्रणाम! | + | उनको प्रणाम ! |
− | + | एकाकी और अकिंचन हो | |
− | + | जो भू–परिक्रमा को निकले; | |
− | + | हो गए पंगु, प्रति–पद जिनके | |
− | + | इतने अदृष्ट के दाव चले ! | |
− | उनको प्रणाम | + | उनको प्रणाम ! |
− | + | कृत–कृत नहीं जो हो पाए; | |
− | जो | + | प्रत्युत फाँसी पर गए झूल |
− | + | कुछ ही दिन बीते हैं¸ फिर भी | |
− | + | यह दुनिया जिनको गई भूल ! | |
− | उनको प्रणाम | + | उनको प्रणाम ! |
− | + | थी उम्र साधना, पर जिनका | |
− | + | जीवन नाटक दु:खांत हुआ; | |
− | + | या जन्म–काल में सिंह लग्न | |
− | + | पर कुसमय ही देहांत हुआ ! | |
− | उनको प्रणाम! | + | उनको प्रणाम ! |
− | + | दृढ़ व्रत औ' दुर्दम साहस के | |
− | + | जो उदाहरण थे मूर्ति–मंत ? | |
− | + | पर निरवधि बंदी जीवन ने | |
− | पर | + | जिनकी धुन का कर दिया अंत ! |
− | उनको प्रणाम | + | उनको प्रणाम ! |
− | + | जिनकी सेवाएँ अतुलनीय | |
− | + | पर विज्ञापन से रहे दूर | |
− | + | प्रतिकूल परिस्थिति ने जिनके | |
− | + | कर दिए मनोरथ चूर–चूर ! | |
− | + | उनको प्रणाम ! | |
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− | जिनकी सेवाएँ अतुलनीय | + | |
− | पर विज्ञापन से रहे दूर | + | |
− | प्रतिकूल परिस्थिति ने जिनके | + | |
− | कर दिए मनोरथ चूर–चूर! | + | |
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11:49, 18 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
जो नहीं हो सके पूर्ण–काम
मैं उनको करता हूँ प्रणाम ।
कुछ कंठित औ' कुछ लक्ष्य–भ्रष्ट
जिनके अभिमंत्रित तीर हुए;
रण की समाप्ति के पहले ही
जो वीर रिक्त तूणीर हुए !
उनको प्रणाम !
जो छोटी–सी नैया लेकर
उतरे करने को उदधि–पार;
मन की मन में ही रही¸ स्वयं
हो गए उसी में निराकार !
उनको प्रणाम !
जो उच्च शिखर की ओर बढ़े
रह–रह नव–नव उत्साह भरे;
पर कुछ ने ले ली हिम–समाधि
कुछ असफल ही नीचे उतरे !
उनको प्रणाम !
एकाकी और अकिंचन हो
जो भू–परिक्रमा को निकले;
हो गए पंगु, प्रति–पद जिनके
इतने अदृष्ट के दाव चले !
उनको प्रणाम !
कृत–कृत नहीं जो हो पाए;
प्रत्युत फाँसी पर गए झूल
कुछ ही दिन बीते हैं¸ फिर भी
यह दुनिया जिनको गई भूल !
उनको प्रणाम !
थी उम्र साधना, पर जिनका
जीवन नाटक दु:खांत हुआ;
या जन्म–काल में सिंह लग्न
पर कुसमय ही देहांत हुआ !
उनको प्रणाम !
दृढ़ व्रत औ' दुर्दम साहस के
जो उदाहरण थे मूर्ति–मंत ?
पर निरवधि बंदी जीवन ने
जिनकी धुन का कर दिया अंत !
उनको प्रणाम !
जिनकी सेवाएँ अतुलनीय
पर विज्ञापन से रहे दूर
प्रतिकूल परिस्थिति ने जिनके
कर दिए मनोरथ चूर–चूर !
उनको प्रणाम !