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अभी कल तक | अभी कल तक | ||
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गालियॉं देती तुम्हें | गालियॉं देती तुम्हें | ||
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हताश खेतिहर, | हताश खेतिहर, | ||
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अभी कल तक | अभी कल तक | ||
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धूल में नहाते थे | धूल में नहाते थे | ||
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धनहर खेतों की माटी, | धनहर खेतों की माटी, | ||
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अभी कल तक | अभी कल तक | ||
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धरती की कोख में | धरती की कोख में | ||
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दुबके पेड़ थे मेंढक, | दुबके पेड़ थे मेंढक, | ||
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अभी कल तक | अभी कल तक | ||
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उदास और बदरंग था आसमान! | उदास और बदरंग था आसमान! | ||
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ऊपर-ही-ऊपर तन गए हैं | ऊपर-ही-ऊपर तन गए हैं | ||
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और आज | और आज | ||
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छमका रही है पावस रानी | छमका रही है पावस रानी | ||
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बूँदा-बूँदियों की अपनी पायल, | बूँदा-बूँदियों की अपनी पायल, | ||
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और आज | और आज | ||
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चालू हो गई है | चालू हो गई है | ||
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झींगुरो की शहनाई अविराम, | झींगुरो की शहनाई अविराम, | ||
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और आज | और आज | ||
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ज़ोरों से कूक पड़े | ज़ोरों से कूक पड़े | ||
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नाचते थिरकते मोर, | नाचते थिरकते मोर, | ||
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और आज | और आज | ||
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आ गई वापस जान | आ गई वापस जान | ||
− | + | दूब की झुलसी शिराओं के अंदर, | |
− | दूब की झुलसी | + | और आज विदा हुआ चुपचाप ग्रीष्म |
− | + | समेटकर अपने लाव-लश्कर। | |
− | और आज | + | </poem> |
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− | समेटकर अपने लाव- | + |
11:49, 18 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
अभी कल तक
गालियॉं देती तुम्हें
हताश खेतिहर,
अभी कल तक
धूल में नहाते थे
गोरैयों के झुंड,
अभी कल तक
पथराई हुई थी
धनहर खेतों की माटी,
अभी कल तक
धरती की कोख में
दुबके पेड़ थे मेंढक,
अभी कल तक
उदास और बदरंग था आसमान!
और आज
ऊपर-ही-ऊपर तन गए हैं
तम्हारे तंबू,
और आज
छमका रही है पावस रानी
बूँदा-बूँदियों की अपनी पायल,
और आज
चालू हो गई है
झींगुरो की शहनाई अविराम,
और आज
ज़ोरों से कूक पड़े
नाचते थिरकते मोर,
और आज
आ गई वापस जान
दूब की झुलसी शिराओं के अंदर,
और आज विदा हुआ चुपचाप ग्रीष्म
समेटकर अपने लाव-लश्कर।