भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सभ्यता / संतोष मायामोहन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: <poem>सड़क के दोनों किनारों खड़े हैं दसियों, बीसियों, तीसियों मंजिले …) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | < | + | {{KKGlobal}} |
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=संतोष मायामोहन | ||
+ | |संग्रह= | ||
+ | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <Poem> | ||
+ | सड़क के दोनों किनारों | ||
खड़े हैं | खड़े हैं | ||
दसियों, बीसियों, तीसियों मंजिले मकान | दसियों, बीसियों, तीसियों मंजिले मकान | ||
− | मैं देखती | + | मैं देखती हूँ इन्हें |
− | और मापने लगती | + | और मापने लगती हूँ |
किसी भविष्य के "थेह" | किसी भविष्य के "थेह" | ||
− | की | + | की ऊँचाई । |
− | खोदती | + | खोदती हूँ उन्हें |
− | और | + | और ढूँढ़ने लगती हूं किसी सभ्यता |
के निशान | के निशान | ||
वह मिलती है मुझे | वह मिलती है मुझे |
14:34, 29 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
सड़क के दोनों किनारों
खड़े हैं
दसियों, बीसियों, तीसियों मंजिले मकान
मैं देखती हूँ इन्हें
और मापने लगती हूँ
किसी भविष्य के "थेह"
की ऊँचाई ।
खोदती हूँ उन्हें
और ढूँढ़ने लगती हूं किसी सभ्यता
के निशान
वह मिलती है मुझे
इन महलों की गहरी नींव में
क्षत-विक्षत
लहूलुहान ।
अनुवाद : मोहन आलोक