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मुरली / सत्यप्रकाश जोशी

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उण दिन
हूं देख्यो कै थूं
कदंब री डाळ रै आपै
फगत सात ठींडां रा बांस नै
कोरा मोरा सात तीणां रा बांस नै
होठां सूं लगा‘र थारा सांस भरै है ;
 
थारी आंगळियां
उण बोदै बांस रै पोरां
नुवै जीवन रौ निरत करै है
अर उण सूखै बांस री नळकी सूं
सुरां रा बादळ झरै है।
म्हैं तो आपौ बिसरगी।
 
म्हनैं सरणाटा रा पगोतियां माथै
सुरां रा बिछिया बाजता लाग्या
जांणै अणहूंत नाचता लाग्या।
 
म्हैं कह्यौ -
हे कान्हं !
म्हनैं ई थारा होठां सूं लगा‘र
इणी गत, इणी भांत
म्हारैं प्राणां में थारा सांस फुंकदै।
 
इणी गत, इणी भांत
म्हारी काया रै लाख लाख पोरां
थारी आंगळियां नचा।
म्हारैं मन राग भरदै
सुर भरदै
चेतन करदै ।
 
</Poem>
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