भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मटकी / मदन गोपाल लढ़ा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा | |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=म्हारै पांती री चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा |
}} | }} | ||
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]] | [[Category:मूल राजस्थानी भाषा]] |
20:55, 1 दिसम्बर 2010 का अवतरण
माटी रै सबदां नै
पगां सूं खूंधै
गांठां तोड़ै
अर पसीनो रळा‘र
भासा बणावै।
हाथ री कलम सूं
चाक रै कागद माथै
सिरजै मटकी
न्हेई रो ताप
रचना पीड़ बणै
भावना रा भतूळियां सूं
रचीजै
रंग-रंगीला मांडणा।
कुंभार री मैणत सूं
रचीजी मटकी
कविता सूं
कम कठै है ?