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"दुख / मदन गोपाल लढ़ा" के अवतरणों में अंतर
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21:00, 1 दिसम्बर 2010 का अवतरण
अणमाप खुसी थकां ई
गीली हुय जावै आंख्यां
ओळखां आपां
खुसी रा आंसू
पण असल मांय
दुख बरोबर मौजूद रैवै
मानखै री जूण में।
मिनखाजूण रो दुख
कविता में रळै
संवेदणा रूप
लोक रै कंठा गूंजै
बण‘र गीत।
जद रचीजी धरती
उणींज वेळा
जलम्यो हुवैला दुख
हर जुग
हर रितु
हर वार
दुख अटल है !
अजर अमर है !!