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किसकी तसल्ली पर मैं रोकूँ अश्कों के सैलाब मेरे / संकल्प शर्मा का नाम बदलकर किसकी तसल्ली पर अब रोकू
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किसकी तसल्ली पर मैं अब रोकूँ अश्कों के सैलाब मिरे, देख के दीवानों-सी हालत हँसते हैं अहबाब<ref>दोस्त</ref> मिरे
जब से गए हो नहीं चहकती चिड़िया आकर खिड़की में, गया वो बालकनी के फ़ूल भी सूखे -सूखे हैं और महकना उतरना भूल गए हैं बाल्कनी के गुलाब गया है खिड़की में महताब<ref>चाँद</ref> मिरे
आस के दामन से लिपटे हम कब तक तेरी राह तकें,
या तो दीद<ref>देखने कोदीदार,देखना</ref> की सूरत दे या बिखरा दे सब ख्वाब मिरे
पूछ रहा है यूँ तू मुझसे राज़ मेरी बर्बादी के,
ज़रा संभालना रुला न डालें तुझको कहीं जवाब मेरे।तुझ को ग़मगीं<ref>ग़मगीन,उदास </ref> भी कर सकते हैं वो सब असबाब<ref>कारण का बहुवचन </ref></poem>मिरे
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