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"कुरुक्षेत्र/अरुण कुमार नागपाल" के अवतरणों में अंतर

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|कृतियाँ=[[विश्वास का रबाब / अरुण कुमार नागपाल|विश्वास का रबाब]](2003),
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  थक हार गया हूँ मैं
 
  थक हार गया हूँ मैं
 
  खत्म हो चुके हैं  
 
  खत्म हो चुके हैं  
मेरे तरकश के सारे तीर
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मेरे तरकश के सारे तीर
टूट चुकी है तलवार
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टूट चुकी है तलवार
अपना अतिंम भाला भी फेंक चुका हूँ मैं
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अपना अतिंम भाला भी फेंक चुका हूँ मैं
जीवन की ओर
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जीवन की ओर
  
अभिमन्यु के मनिंद
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अभिमन्यु के मनिंद
उठा लिया है
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रथ का पहिया
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रथ का पहिया
चुनौतियों से लड़ने के लिए  
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चुनौतियों से लड़ने के लिए  
  
क्षत-विक्षत हो चुका है
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क्षत-विक्षत हो चुका है
मेरा कवच
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मेरा कवच
और लहू के धारे बह रहे हैं
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और लहू के धारे बह रहे हैं
मेरे बदन के घावों से
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ऐसे में सोच रहा हूँ
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ऐसे में सोच रहा हूँ
कहाँ है वो कृष्ण
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कहाँ है वो कृष्ण
जिसने मेरी पीठ को थपथपाकर
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जिसने मेरी पीठ को थपथपाकर
जीवन के कुरुक्षेत्र में कूद जाने का उपदेश दिया था ।  
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जीवन के कुरुक्षेत्र में कूद जाने का उपदेश दिया था ।  
  
 
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14:21, 7 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण



 जीवन से लड़ते-लड़ते
 बीत चुकें हैं
 कई रोज़,महीने,साल
 थक हार गया हूँ मैं
 खत्म हो चुके हैं
 मेरे तरकश के सारे तीर
 टूट चुकी है तलवार
 अपना अतिंम भाला भी फेंक चुका हूँ मैं
 जीवन की ओर

 अभिमन्यु के मनिंद
 उठा लिया है
 रथ का पहिया
 चुनौतियों से लड़ने के लिए

 क्षत-विक्षत हो चुका है
 मेरा कवच
 और लहू के धारे बह रहे हैं
 मेरे बदन के घावों से

 ऐसे में सोच रहा हूँ
 कहाँ है वो कृष्ण
 जिसने मेरी पीठ को थपथपाकर
 जीवन के कुरुक्षेत्र में कूद जाने का उपदेश दिया था ।