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कुरुक्षेत्र/अरुण कुमार नागपाल

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{{KKParichayKKRachna|चित्र=Nagpalarun_kumar_001.jpg|नामरचनाकार=अरुण कुमार नागपाल |उपनामसंग्रह=|जन्म=03 दिसंबर 1970|जन्मस्थान= नगरोटा बगवाँ,ज़िला काँगड़ा(हिमाचल प्रदेश)|कृतियाँ=[[विश्वास का रबाब / अरुण कुमार नागपाल|विश्वास का रबाब]](2003),[[आओ बन जाएँ / अरुण कुमार नागपाल | आओ बन जाएँ]](2004)|विविध= |अंग्रेज़ीनाम=Arun Kumar Nagpal|जीवनी=[[अरुण कुमार नागपाल / परिचय]]}}{{KKCatHimachalKKCatKavita}}   
थक हार गया हूँ मैं
खत्म हो चुके हैं
मेरे तरकश के सारे तीर टूट चुकी है तलवार अपना अतिंम भाला भी फेंक चुका हूँ मैं जीवन की ओर
अभिमन्यु के मनिंद उठा लिया है रथ का पहिया चुनौतियों से लड़ने के लिए
क्षत-विक्षत हो चुका है मेरा कवच और लहू के धारे बह रहे हैं मेरे बदन के घावों से
ऐसे में सोच रहा हूँ कहाँ है वो कृष्ण जिसने मेरी पीठ को थपथपाकर जीवन के कुरुक्षेत्र में कूद जाने का उपदेश दिया था ।
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