Last modified on 8 नवम्बर 2009, at 19:01

"नाई / असद ज़ैदी" के अवतरणों में अंतर

(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=असद ज़ैदी }} एक दिन दाढ़ी बनवाते हुए मैं उस्तरे के नीच...)
 
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=असद ज़ैदी
 
|रचनाकार=असद ज़ैदी
 +
|संग्रह=कविता का जीवन / असद ज़ैदी
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
 
+
<poem>
 
एक दिन दाढ़ी बनवाते हुए
 
एक दिन दाढ़ी बनवाते हुए
 
 
मैं उस्तरे के नीचे सो गया
 
मैं उस्तरे के नीचे सो गया
 
  
 
कई बार ऎसा होता है
 
कई बार ऎसा होता है
 
 
कि लोग हजामत बनवाते हुए
 
कि लोग हजामत बनवाते हुए
 
 
सो जाते हैं
 
सो जाते हैं
 
 
उस्तरे, कंघे और क़ैंची के नीचे
 
उस्तरे, कंघे और क़ैंची के नीचे
 
 
जैसे पेड़ के नीचे
 
जैसे पेड़ के नीचे
 
  
 
नाई नींद में भी घुस आया अपने किस्से का छोर संभाले
 
नाई नींद में भी घुस आया अपने किस्से का छोर संभाले
 
 
कहा-- अजी मैं कभी का हो गया होता बरबाद
 
कहा-- अजी मैं कभी का हो गया होता बरबाद
 
 
भला हुआ ताऊ ने हाथ में उस्तरा दे कर
 
भला हुआ ताऊ ने हाथ में उस्तरा दे कर
 
 
बना दिया जबरन मुझे नाई
 
बना दिया जबरन मुझे नाई
 +
</poem>

19:01, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

एक दिन दाढ़ी बनवाते हुए
मैं उस्तरे के नीचे सो गया

कई बार ऎसा होता है
कि लोग हजामत बनवाते हुए
सो जाते हैं
उस्तरे, कंघे और क़ैंची के नीचे
जैसे पेड़ के नीचे

नाई नींद में भी घुस आया अपने किस्से का छोर संभाले
कहा-- अजी मैं कभी का हो गया होता बरबाद
भला हुआ ताऊ ने हाथ में उस्तरा दे कर
बना दिया जबरन मुझे नाई