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|रचनाकार=क़तील शिफ़ाई
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ज़िन्दगी में तो सभी प्यार किया करते हैं
मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा
ज़िन्दगी में तू मिला है तो सभी प्यार किया करते हैं <br>ये एहसास हुआ है मुझको मैं तो मर कर भी ये मेरी जान उम्र मोहब्बत के लिये थोड़ी है इक ज़रा सा ग़म-ए-दौराँ का भी हक़ है जिस पर मैनें वो साँस भी तेरे लिये रख छोड़ी है तुझपे हो जाऊँगा क़ुरबान तुझे चाहूँगा <br><br>
तू मिला है तो ये एहसास हुआ है मुझको <br>ये मेरी उम्र मोहब्बत अपने जज़्बात में नग़्मात रचाने के लिये थोड़ी मैनें धड़कन की तरह दिल में बसाया है <br>तुझे इक ज़रा सा ग़म-ए-दौराँ मैं तसव्वुर भी जुदाई का भी हक़ है जिस पर <br>भला कैसे करूँ मैनें वो साँस भी तेरे लिये रख छोड़ी मैं ने क़िस्मत की लकीरों से चुराया है <br>तुझे तुझपे हो जाऊँगा क़ुरबान प्यार का बन के निगेहबान तुझे चाहूँगा <br><br>
अपने जज़्बात में नग़्मात रचाने के लिये <br>मैनें धड़कन की तरह दिल में बसाया है तुझे <br>मैं तसव्वुर भी जुदाई का भला कैसे करूँ <br>मैं ने क़िस्मत की लकीरों से चुराया है तुझे <br>प्यार का बन के निगेहबान तुझे चाहूँगा <br><br> तेरी हर चाप से जलते हैं ख़यालों में चिराग़ <br>जब भी तू आये जगाता हुआ जादू आये <br>तुझको छू लूँ तो फिर ऐ जान-ए-तमन्ना मुझको <br>देर तक अपने बदन से तेरी ख़ुश्बू आये <br>तू बहारों का है उनवान तुझे चाहूँगा <br><br/poem>
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