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यह आभा दिनकर के तन की
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फिर चमक उठा गगन सारा
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फिर गमक उठा है वन सारा
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फिर पक्षी-कलरव गूँज उठा
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कुसुमित हो उठा जीवन सारा
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यह धूप कपूरी, क्या कहना
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यह रंग कसूरी, क्या कहना
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अक्षत-सा छींट रही मन में
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उल्लास-माधुरी क्या कहना
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फिर संदली धूल उड़े हलकी
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फिर जल में कंचन की झलकी
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फिर अपनी बाँकी चितवन से
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मुझे लुभाए यह लड़की
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(रचनाकाल : 2005)
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20:35, 22 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण

यह धूप बताशे के रंग की
यह दमक आतशी दर्पण की
कई दिनों में आज खिल आई है
यह आभा दिनकर के तन की

फिर चमक उठा गगन सारा
फिर गमक उठा है वन सारा
फिर पक्षी-कलरव गूँज उठा
कुसुमित हो उठा जीवन सारा

यह धूप कपूरी, क्या कहना
यह रंग कसूरी, क्या कहना
अक्षत-सा छींट रही मन में
उल्लास-माधुरी क्या कहना

फिर संदली धूल उड़े हलकी
फिर जल में कंचन की झलकी
फिर अपनी बाँकी चितवन से
मुझे लुभाए यह लड़की


(रचनाकाल : 2005)