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01:43, 10 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
यों उड़ा है नशा जवानी का
जैसे बालू पे हर्फ़ पानी का
ख़ून से अपने लिख गए हैं जवाब
हम उन आँखों की बेज़ुबानी का
रात आया था लटें खोले कोई
फूल महका था रातरानी का
कही ऐसा न हो, मिलें जब आप
कहनेवाला हो चुप कहानी का!
रंग देखें गुलाब के भी आज
जिनको दावा है बाग़वानी का