Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
जीवन फिर-से भी यदि पाऊँ | जीवन फिर-से भी यदि पाऊँ | ||
− | + | ये स्नेहीजन, ये अलबेले मित्र कहाँ से लाऊँ | |
जाने पुण्य उगे थे कैसे | जाने पुण्य उगे थे कैसे |
02:57, 21 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
जीवन फिर-से भी यदि पाऊँ
ये स्नेहीजन, ये अलबेले मित्र कहाँ से लाऊँ
जाने पुण्य उगे थे कैसे
मिले पिता, माता, गुरु वैसे
बीते जो दिन सपने जैसे
कहाँ ढूँढ़ने जाऊँ
वह सम्मान मिला, यश छाया
धन्य हो गयी मानव-काया
जो परिवार, प्रिया-सुख पाया
सोच-सोच पछताऊँ
चारों ओर लगा हो मेला
रहूँ भीड़ में किन्तु अकेला
जिनका विरह न जाये झेला
कैसे उन्हें भुलाऊँ!
जीवन फिर-से भी यदि पाऊँ
वे स्नेहीजन, वे अलबेले मित्र कहाँ से लाऊँ