Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) ('<poem>म्हनैं ठाह है भीड़ होवै- गूंगी-बोळी अर बावळी! साव...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) |
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भीड़ होवै- | भीड़ होवै- | ||
गूंगी-बोळी | गूंगी-बोळी |
20:34, 15 जनवरी 2016 के समय का अवतरण
म्हनैं ठाह है
भीड़ होवै-
गूंगी-बोळी
अर
बावळी!
सावळ
कोनी बोलै
कोनी सुणै
अर समझै तो दर नीं!
छव
म्हनैं ठाह है
सबदां रो मलम
आवै कोनी कोई काम
उण जगां
जठै हरिया होवै घाव
अर मुद्दो होवै गरम।