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धंवर पछै सूरज (कविता) / निशान्त

No change in size, 17:05, 30 अप्रैल 2015
जी दोरौ हुयो घणो
पण
इत्तो संतोख संतोष ई हुयो
कै तरसणो नीं पड़ियो
तावड़ै बैठण सारू ।
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