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जानते सब धर्म आँसू!बदल गये हैं मंजर सारेवेदना के मर्म आँसूबदल गया है गाँव प्रिये!
चाँद पर हैं ख्वाब सारेमोहक ऋतुएँ नहीं रही अबहम खड़े फुटपाथ परसाथ तुम्हारे चली गईं!खींचते हैं बस लकीरेंआशाएँ भी टूट गईं जबरोज अपने हाथ परतुम्हारे छली गईं!क्या करे ये ज़िन्दगी भीआँख के हैं कर्म आँसू!जानते सब धर्म आँसू!बूढ़ा पीपल वहीं खड़ा परवेदना के मर्म आँसूनहीं रही वह छाँव प्रिये!
आज वर्षों बाद उनकीपोर-पोर अंतस का दुखतायाद है आई हमेंदम घुटता पुरवाई में!फिर वही मंजर दिखानेरो लेता हूँ खुद से मिलकरचाँदनी लाई हमेंसोच तुम्हें तन्हाई में!सोचकर ही यूँ उन्हें मीठी बोली भी लगती हैकौए की अबबह चले हैं गर्म आँसू!जानते सब धर्म आँसू!वेदना के मर्म आँसूकाँव प्रिये!
साथ थे चिट्ठी लाता ले जाता जो लोग अपनेछोड़ वे भी जा रहेनहीं रहा वह बनवारी!गीत में हम दर्द भरकरधीरे-धीरे उजड़ गये सबसिर्फ बैठे गा रहेबाग-बगीचे फुलवारी!रोज लेते हैं मजे बसछोड़कर सब शर्म आँसू!जानते सब धर्म आँसू!बैठूँ जाकर पल दो पल मैंवेदना के मर्म आँसूनहीं रही वह ठाँव प्रिये!
रोज ही इनको बहातेपथरीली राहों की ठोकररोज ही हम पी रहेजाने कितने झेल लिए!बस इन्हीं के साथ रहकरसारे खेल हृदय से अपनेजिन्दगी हम जी रहेबारी-बारी खेल लिए!पत्थरों के बीच रहकरकदम-कदम पर जग जीता, हमहो हार गये बेशर्म आँसूहर दाँव प्रिये!जानते सब धर्म आँसूपीड़ा आज चरम पर पहुँचीनदी आँख की भर आई!वेदना के मर्म आँसूदूर तलक है गहन अँधेराऔर जमाना हरजाई!फिर भी चलता जाता हूँ मैंभले थके हैं पाँव प्रिये!
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