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<poem>इस तरह याद आएँगे हम फ़ुरसतों के दर्मियाँ दरमियाँ ज्यों खनक जाए है कुछ ख़ामोशियों के दर्मियाँ दरमियाँ
तेरी बीनाई किसी दिन छीन लेगा देखना
देर तक रहना तेरा ये आईनों के दर्मियाँ दरमियाँ
क़ैद सा महसूस करता है दिलों का राज़ भी
खुल नहीं जाता है जब तक दूसरों के दर्मियाँ दरमियाँ
दूरियाँ-नज़दीकियाँ ऐसी ही हम दोनों में है
जैसी होती है अमूमन दो घरों के दर्मियाँ दरमियाँ
इक अलग ही तर्ज़ के होते हैं शोहरत के शिखर
सीढ़ियाँ रहती हैं ग़ायब सीढ़ियों के दर्मियाँ दरमियाँ
हर मुसाफ़िर की नज़र ऐसी कहाँ जो देख ले
फ़ासले कुछ और भी हैं फ़ासलों के दर्मियाँ दरमियाँ
</poem>
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