अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नासिर अहमद सिकंदर |संग्रह= }} <Poem> मेरे समने की बर्...) |
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माँ | माँ |
11:04, 21 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
मेरे सामने की बर्थ पर था
उनका परिवार
माँ
और दो बच्चियाँ
बड़ी बच्ची का चेहरा
हुबहू माँ की तरह गोल
चांद सरीखा
छोटी का
बड़ी बहन से मिलता-जुलता
लेकिन दिखने में उससे भी सुन्दर
बड़ी प्यारी हैं बच्चियाँ
मैंने
उनकी माँ से कहा
इस वाक्य पर बिना ध्यान दिए
वह खोई रही मुग्ध
अपने भ्रूण पर
जो निश्चित
लड़का था ।