(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन }} आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो। ...) |
|||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन | |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन | ||
+ | |अनुवादक= | ||
+ | |संग्रह=मिलन यामिनी / हरिवंशराय बच्चन | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
− | + | <poem> | |
आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो। | आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो। | ||
− | |||
मैं नहीं पिछली अभी झंकार भूला, | मैं नहीं पिछली अभी झंकार भूला, | ||
− | |||
मैं नहीं पहले दिनों का प्यार भूला, | मैं नहीं पहले दिनों का प्यार भूला, | ||
− | |||
गोद में ले, मोद से मुझको लसो तो; | गोद में ले, मोद से मुझको लसो तो; | ||
− | |||
आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो। | आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो। | ||
− | |||
हाथ धर दो, मैं नया वरदान पाऊँ, | हाथ धर दो, मैं नया वरदान पाऊँ, | ||
− | |||
फूँक दो, बिछुड़े हुए मैं प्राण, | फूँक दो, बिछुड़े हुए मैं प्राण, | ||
− | |||
स्वर्ग का उल्लास, पर भर तुम हँसो तो; | स्वर्ग का उल्लास, पर भर तुम हँसो तो; | ||
− | |||
आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो। | आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो। | ||
− | |||
मौन के भी कंठ में मैं स्वर भरूँगा, | मौन के भी कंठ में मैं स्वर भरूँगा, | ||
− | |||
एक दुनिया ही नई मुखरित करूँगा, | एक दुनिया ही नई मुखरित करूँगा, | ||
− | |||
तुम अकेली आज अंतर में बसो तो; | तुम अकेली आज अंतर में बसो तो; | ||
− | |||
आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो। | आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो। | ||
− | |||
रात भागेगी, सुनहरा प्रात होगा, | रात भागेगी, सुनहरा प्रात होगा, | ||
− | |||
जग उषा-मुसकान-मधु से स्नात होगा, | जग उषा-मुसकान-मधु से स्नात होगा, | ||
− | |||
तेज शर बन तुम तिमिर घन में धँसो तो; | तेज शर बन तुम तिमिर घन में धँसो तो; | ||
− | |||
आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो। | आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो। | ||
+ | </poem> |
21:42, 26 जुलाई 2020 के समय का अवतरण
आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो।
मैं नहीं पिछली अभी झंकार भूला,
मैं नहीं पहले दिनों का प्यार भूला,
गोद में ले, मोद से मुझको लसो तो;
आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो।
हाथ धर दो, मैं नया वरदान पाऊँ,
फूँक दो, बिछुड़े हुए मैं प्राण,
स्वर्ग का उल्लास, पर भर तुम हँसो तो;
आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो।
मौन के भी कंठ में मैं स्वर भरूँगा,
एक दुनिया ही नई मुखरित करूँगा,
तुम अकेली आज अंतर में बसो तो;
आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो।
रात भागेगी, सुनहरा प्रात होगा,
जग उषा-मुसकान-मधु से स्नात होगा,
तेज शर बन तुम तिमिर घन में धँसो तो;
आज मन-वीणा, प्रिए, फिर कसो तो।