अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पद्माकर }}<poem> अधखुली कँचुकी उरोज अध आधे खुले , अध...) |
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21:51, 28 जून 2011 के समय का अवतरण
अधखुली कँचुकी उरोज अध आधे खुले ,
अधखुले बैष नख रेखन के झलकैं ।
कहैं पदमाकर नवीन अध नीबी खुली ,
अधखुले छहरि छराके छोर छलकैँ ।
भोर जग प्यारी अध ऊरध इतै की ओर ,
भायी झिकि झिरकि उघारि अध पलकैं ।
आँखै अधखुलीँ अधखुली खिरकी है खुली ,
अधखुले आनन पै अधखुली अलकैँ ।
पद्माकर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।