|
|
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) |
पंक्ति 1: |
पंक्ति 1: |
− | {{KKGlobal}}
| |
− | {{KKRachna
| |
− | |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
| |
− | }}यों तो खुशी के दौर भी होते है कम नहीं
| |
| | | |
− | ऐसा है कौन, दिल में मगर जिसके गम नहीं!
| |
− |
| |
− |
| |
− | हम हैं कि जी रहे हैं हरेक झूठ को सच मान
| |
− |
| |
− | वरना जो सच कहें, तेरे वादों में दम नहीं
| |
− |
| |
− |
| |
− | कुछ तो ज़रूर है तेरी बेगानगी का राज़
| |
− |
| |
− | बेबस हो तू भले ही मगर बेरहम नहीं
| |
− |
| |
− |
| |
− | यह साज़ बेसुरा भी ग़नीमत है दोस्तों!
| |
− |
| |
− | कल लाख पुकारे कोई, बोलेंगे हम नहीं
| |
− |
| |
− |
| |
− | कितना भी लोग प्यार से देखें गुलाब को
| |
− |
| |
− | अब अपनी रंगों-बू का उसको भरम नहीं
| |