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घड़ी दो घड़ी मुझको पलकों पे रख | घड़ी दो घड़ी मुझको पलकों पे रख | ||
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कभी बस्तियाँ दिल की यूँ भी बसीं | कभी बस्तियाँ दिल की यूँ भी बसीं | ||
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गुलों के जहाँ शामियाने लगे | गुलों के जहाँ शामियाने लगे | ||
− | पढाई लिखाई का मौसम कहाँ | + | पढाई-लिखाई का मौसम कहाँ |
किताबों में ख़त आने-जाने लगे | किताबों में ख़त आने-जाने लगे | ||
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23:56, 21 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
जहाँ पेड़ पर चार दाने लगे
हज़ारों तरफ़ से निशाने लगे
हुई शाम यादों के इक गाँव में
परिंदे उदासी के आने लगे
घड़ी दो घड़ी मुझको पलकों पे रख
यहाँ आते-आते ज़माने लगे
कभी बस्तियाँ दिल की यूँ भी बसीं
दुकानें खुलीं, कारख़ाने लगे
वहीं ज़र्द पत्तों का कालीन है
गुलों के जहाँ शामियाने लगे
पढाई-लिखाई का मौसम कहाँ
किताबों में ख़त आने-जाने लगे