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"तेरी हँसी / सतीश बेदाग़" के अवतरणों में अंतर

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किताब
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वो एक किताब जो हम साथ पढ़ा करते हैं
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सिरहाने नीचे वहीं की वहीं मिलेगी तुम्हें
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|रचनाकार=सतीश बेदाग़
वो ज़िन्दगी जिसे हम साथ जिया करते हैं
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|संग्रह=एक चुटकी चाँदनी / सतीश बेदाग़
तुम्हारे पीछे वहीं की वहीं पड़ी है बंद
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देखकर तेरी हँसी,देखा है
  
जहां से पन्ना मुड़ा देखो खोल लेना तुम
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आँखें मलता है उस तरफ़ सूरज
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जागने लगती है सुबह हर ओर
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धुंध में धुप निकल आती है
  
('एक चुटकी चाँदनी' से)
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पेड़ों पर कोम्पलें निकलतीं हैं
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बालियों में पनपते हैं दाने
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भरने लगते हैं रस से सब बागान
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जब सिमट आती है हाथों में मेरे तेरी हँसी
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तब मेरे ज़हन में अल्लाह का नाम आता है
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08:40, 28 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

 
देखकर तेरी हँसी,देखा है

आँखें मलता है उस तरफ़ सूरज
जागने लगती है सुबह हर ओर
धुंध में धुप निकल आती है

पेड़ों पर कोम्पलें निकलतीं हैं
बालियों में पनपते हैं दाने
भरने लगते हैं रस से सब बागान

जब सिमट आती है हाथों में मेरे तेरी हँसी
तब मेरे ज़हन में अल्लाह का नाम आता है