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<poem>
हा! हा! इन्हैं रोकन कौं टोक न लगावौ तुम,
::बिसद-बिबेक ज्ञान गौरव-दुलारे ह्वै ।
प्रेम रतनाकर कहत इमि ऊधव सौं,
::थहरि करेजौ थामि परम दुखारे ह्वै ॥
सीतल करत नैंकु हीतल हमारौ परि,
::बिषम-बियोग-ताप-समन पुचारे ह्वै ।
गोपिनि के नैन-नीर ध्यान-नलिका ह्वै धाइ,
::दृगनि हमारै आइ छूटत फुहारे ह्वै ॥17॥
</poem>
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