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झिन्गना की राम कहानी / रवीन्द्र प्रभात
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06:41, 5 फ़रवरी 2010
अपने परम्परागत पेशे को
ढोता हुआ आज भी वह
वाहन
वहन
कर रहा सलीके से
मर्यादित जीवन को बार-बार
सतही मानसिकता से ऊपर
अलाप लेकर -
आल्हा -उदल / सोरठी-बिर्जाभार
सारंगा-सदाब्रिक्ष/
भारतरी
भरतरी
चरित
या बिहुला-बाला-लखंदर का ।
रवीन्द्र प्रभात
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