Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) |
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+ | हाथ आ कर गया, गया कोई । | ||
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मैं खड़ा था कि पीठ पर मेरी | मैं खड़ा था कि पीठ पर मेरी | ||
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+ | बेच के अपना खा गया कोई । | ||
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+ | सब कबूतर उड़ा गया कोई । | ||
यह सदी धूप को तरसती है | यह सदी धूप को तरसती है | ||
+ | जैसे सूरज को खा गया कोई । | ||
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− | + | छोटा-मोटा ख़ुदा गया कोई । | |
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मेरा बचपन भी साथ ले आया | मेरा बचपन भी साथ ले आया | ||
− | + | गाँव से जब भी आ गया कोई । | |
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20:17, 30 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण
हाथ आ कर गया, गया कोई ।
मेरा छप्पर उठा गया कोई ।
लग गया इक मशीन में मैं भी
शहर में ले के आ गया कोई ।
मैं खड़ा था कि पीठ पर मेरी
इश्तिहार इक लगा गया कोई ।
ऐसी मंहगाई है कि चेहरा भी
बेच के अपना खा गया कोई ।
अब कुछ अरमाँ हैं न कुछ सपने
सब कबूतर उड़ा गया कोई ।
यह सदी धूप को तरसती है
जैसे सूरज को खा गया कोई ।
वो गए जब से ऐसा लगता है
छोटा-मोटा ख़ुदा गया कोई ।
मेरा बचपन भी साथ ले आया
गाँव से जब भी आ गया कोई ।