Last modified on 23 सितम्बर 2010, at 10:43

"आसमान के साए साए/ सर्वत एम जमाल" के अवतरणों में अंतर

 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
                  {{KKRachna}}
+
{{KKRachna
                  रचनाकार=सर्वत एम जमाल
+
|रचनाकार=सर्वत एम जमाल  
                  संग्रह=
+
}}
                  }}
+
{{KKCatGhazal}}
                  {{KKCatGhazal}}
+
<poem>
                  <poem>
+
+
 
आसमान के साए साए
 
आसमान के साए साए
 
धूप ने क्या क्या रंग दिखाए
 
धूप ने क्या क्या रंग दिखाए
पंक्ति 38: पंक्ति 36:
  
 
मैं सर्वत जग रोशन कर दूं  
 
मैं सर्वत जग रोशन कर दूं  
कोई तो मेरा हाथ बंटाए</poem>
+
कोई तो मेरा हाथ बंटाए
 +
</poem>
 
_______________________________
 
_______________________________

10:43, 23 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

आसमान के साए साए
धूप ने क्या क्या रंग दिखाए

ज़ुल्म ने जब भी पर फैलाए
अर्श से उतरे फर्श पे साए

यह पौधे फल-फूल भी देंगे
शर्त है इनको सींचा जाए

सत्य, अहिंसा, भाईचारा
तुम क्या दूर की कौड़ी लाए

हम अंगारों पर बैठे थे
और वो फूले नहीं समाए

तुम तो थे इस आग पे नाजां
खद जलने पर क्यों पछताए

अज्म तो था इस खौफ ने तोड़ा
कौन घास की रोटी खाए

बच्चे सरगोशी करते हैं
इतिहासों को शर्म न आए

चेहरों की मुस्कान से डरिए
रात खड़ी है धूप नहाए

दीवारों तक कान का पहरा
दुश्मन हैं अपने हमसाए

मैं सर्वत जग रोशन कर दूं
कोई तो मेरा हाथ बंटाए

_______________________________