"बरसों के बाद देखा इक शख़्स दिलरुबा सा / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अहमद फ़राज़ }} Category=गज़ल बरसों के बाद देखा इक शख़्स दिल...) |
|||
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=अहमद फ़राज़ | |रचनाकार=अहमद फ़राज़ | ||
+ | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
− | [[Category | + | [[Category:ग़ज़ल]] |
+ | <poem> | ||
+ | बरसों के बाद देखा इक शख़्स दिलरुबा सा | ||
+ | अब ज़हन में नहीं है पर नाम था भला सा | ||
− | + | अबरू खिंचे खिंचे से आँखें झुकी झुकी सी | |
− | + | बातें रुकी रुकी सी लहजा थका थका सा | |
− | + | अल्फ़ाज़ थे के जुग्नू आवाज़ के सफ़र में | |
− | + | बन जाये जंगलों में जिस तरह रास्ता सा | |
− | + | ख़्वाबों में ख़्वाब उस के यादों में याद उस की | |
− | + | नींदों में घुल गया हो जैसे के रतजगा सा | |
− | + | पहले भी लोग आये कितने ही ज़िन्दगी में | |
− | + | वो हर तरह से लेकिन औरों से था जुदा सा | |
− | + | अगली मुहब्बतों ने वो नामुरादियाँ दीं | |
− | + | ताज़ा रफ़ाक़तों से दिल था डरा डरा सा | |
− | + | कुछ ये के मुद्दतों से हम भी नहीं थे रोये | |
− | + | कुछ ज़हर में बुझा था अहबाब का दिलासा | |
− | + | फिर यूँ हुआ के सावन आँखों में आ बसे थे | |
− | + | फिर यूँ हुआ के जैसे दिल भी था आबला सा | |
− | + | अब सच कहें तो यारो हम को ख़बर नहीं थी | |
− | + | बन जायेगा क़यामत इक वाक़िआ ज़रा सा | |
− | + | तेवर थे बेरुख़ी के अंदाज़ दोस्ती के | |
− | + | वो अजनबी था लेकिन लगता था आश्ना सा | |
− | + | हम दश्त थे के दरिया हम ज़हर थे के अमृत | |
− | + | नाहक़ था ज़ोंउम हम को जब वो नहीं था प्यासा | |
− | + | हम ने भी उस को देखा कल शाम इत्तेफ़ाक़न | |
− | + | अपना भी हाल है अब लोगो "फ़राज़" का सा | |
− | + | </poem> | |
− | हम ने भी उस को देखा कल शाम इत्तेफ़ाक़न | + | |
− | अपना भी हाल है अब लोगो "फ़राज़" का सा< | + |
20:35, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
बरसों के बाद देखा इक शख़्स दिलरुबा सा
अब ज़हन में नहीं है पर नाम था भला सा
अबरू खिंचे खिंचे से आँखें झुकी झुकी सी
बातें रुकी रुकी सी लहजा थका थका सा
अल्फ़ाज़ थे के जुग्नू आवाज़ के सफ़र में
बन जाये जंगलों में जिस तरह रास्ता सा
ख़्वाबों में ख़्वाब उस के यादों में याद उस की
नींदों में घुल गया हो जैसे के रतजगा सा
पहले भी लोग आये कितने ही ज़िन्दगी में
वो हर तरह से लेकिन औरों से था जुदा सा
अगली मुहब्बतों ने वो नामुरादियाँ दीं
ताज़ा रफ़ाक़तों से दिल था डरा डरा सा
कुछ ये के मुद्दतों से हम भी नहीं थे रोये
कुछ ज़हर में बुझा था अहबाब का दिलासा
फिर यूँ हुआ के सावन आँखों में आ बसे थे
फिर यूँ हुआ के जैसे दिल भी था आबला सा
अब सच कहें तो यारो हम को ख़बर नहीं थी
बन जायेगा क़यामत इक वाक़िआ ज़रा सा
तेवर थे बेरुख़ी के अंदाज़ दोस्ती के
वो अजनबी था लेकिन लगता था आश्ना सा
हम दश्त थे के दरिया हम ज़हर थे के अमृत
नाहक़ था ज़ोंउम हम को जब वो नहीं था प्यासा
हम ने भी उस को देखा कल शाम इत्तेफ़ाक़न
अपना भी हाल है अब लोगो "फ़राज़" का सा