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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=प्रदीप मिश्र|संग्रह= }} {{KKCatKavita}}<poem> '''गिद्ध शाकाहारी नहीं होते'''
आधी शताब्दी से ज़्यादा दिनों तक
आज़ाद रहने के बाद
और आसमान गिद्धों के कब्जे में है
लोकतन्त्र की के लोक को
सावधान की मुद्रा में खड़ा कर दिया गया है
हारमोनियम पर एक शासक का
गिध्द शाकाहारी नहीं होते हैं
फिर क्या खायेंगे वे
देश का संसद मौन है ।
</poem>