भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कल़ायण ! / मनुज देपावत" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='मनुज' देपावत |संग्रह= }} Category:मूल राजस्थानी भाषा {{…)
 
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
+
{{KKCatRajasthaniRachna}}
 
{{KKCatKavita‎}}
 
{{KKCatKavita‎}}
 
<Poem>
 
<Poem>
 
धरती रौ कण -कण ह्वे सजीव,मुरधर में जीवण लहरायौ ।
 
धरती रौ कण -कण ह्वे सजीव,मुरधर में जीवण लहरायौ ।
वा आज कल़ायण घिर आयी ,बादळ अम्बर मं गहरायो ।।
+
वा आज कल़ायण घिर आयी, बादळ अम्बर मं गहरायो ।।
  
वा स्याम वरण उतराद दिसा ,"भूरोड़े- भुरजां" री छाया !
+
वा स्याम वरण उतराद दिसा, "भूरोड़े- भुरजां" री छाया !
लख मोर मोद सूँ नाच उठ्यौ ,वे पाँख हवा मं छितरायाँ ।।
+
लख मोर मोद सूँ नाच उठ्यौ, वे पाँख हवा मं छितरायाँ ।।
  
तिसियारै धोरां पर जळकण ,आभै सूँ उतर-उतर आया ।
+
तिसियारै धोरां पर जळकण, आभै सूँ उतर-उतर आया ।
ज्यूँ ह्वे पुळकित मन मेघ बन्धु ,मुरधर पर मोती बरसाया ।।
+
ज्यूँ ह्वे पुळकित मन मेघ बन्धु, मुरधर पर मोती बरसाया ।।
  
बौ अट्टहास सुन बादळ रौ,धारोल़ा धरती पर आया ।
+
बौ अट्टहास सुन बादळ रौ, धारोल़ा धरती पर आया ।
धडकै सूँ अम्बर धूज उठ्यौ ,कांपी चपल़ा री कृस काया ।।
+
धडकै सूँ अम्बर धूज उठ्यौ, कांपी चपल़ा री कृस काया ।।
  
पण रुक-रुक नै धीरै -धीरै ,वां बूंदा रौ कम हुयौ बेग ।
+
पण रुक-रुक नै धीरै -धीरै, वां बूंदा रौ कम हुयौ बेग ।
यूं कर अमोल निधि -निछरावळ ,यूं बरस-बरस मिट गया मेघ ।।
+
यूं कर अमोल निधि -निछरावळ, यूं बरस-बरस मिट गया मेघ ।।
  
पणघट पर 'डेडर' डहक उठ्या ,सरवर रौ हिवड़ो हुळसायौ ।
+
पणघट पर 'डेडर' डहक उठ्या, सरवर रौ हिवड़ो हुळसायौ ।
चातक री मधुर 'पिहू' रो सुर ,उणमुक्त गिगन मं सरसायौ ।।
+
चातक री मधुर 'पिहू' रो सुर, उणमुक्त गिगन मं सरसायौ ।।
  
मुरधर रे धोरां दूर हुयी ,वा दुखड़े री छाया गहरी ।
+
मुरधर रे धोरां दूर हुयी, वा दुखड़े री छाया गहरी ।
आई सावण री तीज सुखद ,गूंजी गीतां री सुर -लहरी ।।
+
आई सावण री तीज सुखद, गूंजी गीतां री सुर -लहरी ।।
  
 
झूलां रा झुकता "पैंग" देख तरुणा रौ हिवड़ो हरसायौ ।
 
झूलां रा झुकता "पैंग" देख तरुणा रौ हिवड़ो हरसायौ ।
सुण पड़ी चूड़ियाँ री खण -खण , वौ चीर हवा मं लहरायौ ।।
+
सुण पड़ी चूड़ियाँ री खण -खण, वौ चीर हवा मं लहरायौ ।।
  
ऐ रजवट रा कर्मठ किसाण ,मेहणत रा रूप जाका नाहर ।
+
ऐ रजवट रा कर्मठ किसाण, मेहणत रा रूप जाका नाहर ।
 
धरती री छाती चीर चीर, ऐ धन उगा लावै बाहर ।।
 
धरती री छाती चीर चीर, ऐ धन उगा लावै बाहर ।।
  
उण मेहणत रौ फळ देवण नै , सुख दायक चौमासौ आयौ ।
+
उण मेहणत रौ फळ देवण नै, सुख दायक चौमासौ आयौ ।
 
धरती रो कण -कण ह्वे सजीव, मुरधर मं जीवण लहरायौ ।।
 
धरती रो कण -कण ह्वे सजीव, मुरधर मं जीवण लहरायौ ।।
 
</poem>
 
</poem>

14:43, 21 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

धरती रौ कण -कण ह्वे सजीव,मुरधर में जीवण लहरायौ ।
वा आज कल़ायण घिर आयी, बादळ अम्बर मं गहरायो ।।

वा स्याम वरण उतराद दिसा, "भूरोड़े- भुरजां" री छाया !
लख मोर मोद सूँ नाच उठ्यौ, वे पाँख हवा मं छितरायाँ ।।

तिसियारै धोरां पर जळकण, आभै सूँ उतर-उतर आया ।
ज्यूँ ह्वे पुळकित मन मेघ बन्धु, मुरधर पर मोती बरसाया ।।

बौ अट्टहास सुन बादळ रौ, धारोल़ा धरती पर आया ।
धडकै सूँ अम्बर धूज उठ्यौ, कांपी चपल़ा री कृस काया ।।

पण रुक-रुक नै धीरै -धीरै, वां बूंदा रौ कम हुयौ बेग ।
यूं कर अमोल निधि -निछरावळ, यूं बरस-बरस मिट गया मेघ ।।

पणघट पर 'डेडर' डहक उठ्या, सरवर रौ हिवड़ो हुळसायौ ।
चातक री मधुर 'पिहू' रो सुर, उणमुक्त गिगन मं सरसायौ ।।

मुरधर रे धोरां दूर हुयी, वा दुखड़े री छाया गहरी ।
आई सावण री तीज सुखद, गूंजी गीतां री सुर -लहरी ।।

झूलां रा झुकता "पैंग" देख तरुणा रौ हिवड़ो हरसायौ ।
सुण पड़ी चूड़ियाँ री खण -खण, वौ चीर हवा मं लहरायौ ।।

ऐ रजवट रा कर्मठ किसाण, मेहणत रा रूप जाका नाहर ।
धरती री छाती चीर चीर, ऐ धन उगा लावै बाहर ।।

उण मेहणत रौ फळ देवण नै, सुख दायक चौमासौ आयौ ।
धरती रो कण -कण ह्वे सजीव, मुरधर मं जीवण लहरायौ ।।