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"वह दिवस / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर

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दिन था भीषण गर्मी का
 
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मन मेरा तुझसे मिलने को अकुलाया
 
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भरी दुपहरी, तेज़ धूप थी
 
भरी दुपहरी, तेज़ धूप थी
 
 
चार कोस पैदल चलकर मैं तुझ से मिलने आया
 
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पर बन्द थी तेरी कुटीर
 
पर बन्द थी तेरी कुटीर
 
 
तुझे देखने को आतुर
 
तुझे देखने को आतुर
 
 
मगन मन मेरा था अधीर
 
मगन मन मेरा था अधीर
 
 
चल रही थी उत्तप्त लू, झुलसाती थी शरीर
 
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उस बन्द कुटी के सम्मुख ही मैं सारा दिन बैठा आया
 
उस बन्द कुटी के सम्मुख ही मैं सारा दिन बैठा आया
 
  
 
कपोत-कंठी तू ललाम वामा
 
कपोत-कंठी तू ललाम वामा
 
 
अभिसारिका, अनुपमा, मादक, कामा
 
अभिसारिका, अनुपमा, मादक, कामा
 
 
हृदय बिंधे तेरे सम्मोहक बाण
 
हृदय बिंधे तेरे सम्मोहक बाण
 
 
वशीकरण बंधे थे मेरे प्राण
 
वशीकरण बंधे थे मेरे प्राण
 
 
उस दिवस ही कवि बना मैं, उस दिवस ही पगलाया
 
उस दिवस ही कवि बना मैं, उस दिवस ही पगलाया
 
  
 
1999 में रचित
 
1999 में रचित
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11:36, 15 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

दिन था भीषण गर्मी का
मन मेरा तुझसे मिलने को अकुलाया
भरी दुपहरी, तेज़ धूप थी
चार कोस पैदल चलकर मैं तुझ से मिलने आया

पर बन्द थी तेरी कुटीर
तुझे देखने को आतुर
मगन मन मेरा था अधीर
चल रही थी उत्तप्त लू, झुलसाती थी शरीर
उस बन्द कुटी के सम्मुख ही मैं सारा दिन बैठा आया

कपोत-कंठी तू ललाम वामा
अभिसारिका, अनुपमा, मादक, कामा
हृदय बिंधे तेरे सम्मोहक बाण
वशीकरण बंधे थे मेरे प्राण
उस दिवस ही कवि बना मैं, उस दिवस ही पगलाया

1999 में रचित