भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हिमशृंग / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
Arti Singh (चर्चा | योगदान) |
||
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार= चन्द्रकुंवर बर्त्वाल | |रचनाकार= चन्द्रकुंवर बर्त्वाल | ||
+ | |संग्रह=गीत माधवी / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल | ||
}} | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | '''कविता का एक अंश ही उपलब्ध है। शेष कविता आपके पास हो तो कृपया जोड़ दें या कविता कोश टीम को भेजें ।''' | ||
+ | |||
+ | स्वच्छ केश राशि से अँजलियाँ भर कमलों से | ||
+ | गिरि शृंगों पर चढ़ उदयमान दिनकर का | ||
+ | उपस्थान करते हैं मृदु गंभीर स्वरों में | ||
+ | स्निग्ध हँसी की किरणें फूट रही जग भर में | ||
+ | पुण्य नाद साँसों का पुलकित कर विपिनों को | ||
+ | मुखर खगों को, जमा रहा गृह-गृह में निंद्रा से | ||
+ | निश्चेष्ट पड़ी आत्मा को, मुक्त कर रहा | ||
+ | तिमिर-रूद्ध जीवन को पृथ्वी-मय प्रवाह को | ||
द्वार खुल गए अब भवनों के, शून्य पथों में | द्वार खुल गए अब भवनों के, शून्य पथों में | ||
शून्य घाटियों में सरिता के शून्य तटों पर | शून्य घाटियों में सरिता के शून्य तटों पर |
20:15, 21 अगस्त 2020 के समय का अवतरण
कविता का एक अंश ही उपलब्ध है। शेष कविता आपके पास हो तो कृपया जोड़ दें या कविता कोश टीम को भेजें ।
स्वच्छ केश राशि से अँजलियाँ भर कमलों से
गिरि शृंगों पर चढ़ उदयमान दिनकर का
उपस्थान करते हैं मृदु गंभीर स्वरों में
स्निग्ध हँसी की किरणें फूट रही जग भर में
पुण्य नाद साँसों का पुलकित कर विपिनों को
मुखर खगों को, जमा रहा गृह-गृह में निंद्रा से
निश्चेष्ट पड़ी आत्मा को, मुक्त कर रहा
तिमिर-रूद्ध जीवन को पृथ्वी-मय प्रवाह को
द्वार खुल गए अब भवनों के, शून्य पथों में
शून्य घाटियों में सरिता के शून्य तटों पर
जाग उठीं जीवन समुद्र की मुखर तरंगें
पृथ्वी के शैलों पर, पृथ्वी के विपिनों पर
पृथ्वी की नदियों पर पड़ी स्वर्ण की छाया
उदित हुए दिनकर इनकी पूजा से घिर कर