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"पाँवलिया / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल" के अवतरणों में अंतर

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मेरे गृह से सुन पडती गिरिवन से आती
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'''पाँवलिया-- कवि का गृह-गाँव है'''
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मेरे गृह से सुन पडती गिरि-वन से आती
 
हँसी स्वच्छ नदियों की, सुन पडती विपिनों की,
 
हँसी स्वच्छ नदियों की, सुन पडती विपिनों की,
 
मर्मर ध्वनियाँ, सदा दीख पड़ते घरों से  
 
मर्मर ध्वनियाँ, सदा दीख पड़ते घरों से  
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झरती वर्षा, आ बसंत कोमल फूलों से,
 
झरती वर्षा, आ बसंत कोमल फूलों से,
 
मेरे घर को घेर गूँज उठता, विहगों के दल
 
मेरे घर को घेर गूँज उठता, विहगों के दल
निशी दिन मेरे विपिनो में उडते रहते ।
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निशी दिन मेरे विपिनो में उड़ते रहते ।
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कोलाहल से दूर शांत नीरव शैलों पर,
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मेरा गृह है, जहाँ बच्चियों-सी हँस-हँस कर,
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नाच-नाच बहती हैं छोटी-छोटी नदियाँ,
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जिन्हें देखकर, जिनकी मीठी ध्वनियाँ सुनकर,
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मुझे ज्ञात होता जैसे यह प्रिय पृथ्वी तो,
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अभी-अभी ही आई है, इसमें चिंता को
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और मरण को, स्थान अभी कैसे हो सकता है ?
 
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22:04, 23 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

पाँवलिया-- कवि का गृह-गाँव है

मेरे गृह से सुन पडती गिरि-वन से आती
हँसी स्वच्छ नदियों की, सुन पडती विपिनों की,
मर्मर ध्वनियाँ, सदा दीख पड़ते घरों से
खुली खिड़कियों से हिमगिरि के शिखर मनोहर,
उड़-उड़ आती क्षण- क्षण शीत तुषार हवाएँ,
मेरे आँगन छू बादल हँसते गर्जन कर,
झरती वर्षा, आ बसंत कोमल फूलों से,
मेरे घर को घेर गूँज उठता, विहगों के दल
निशी दिन मेरे विपिनो में उड़ते रहते ।

कोलाहल से दूर शांत नीरव शैलों पर,
मेरा गृह है, जहाँ बच्चियों-सी हँस-हँस कर,
नाच-नाच बहती हैं छोटी-छोटी नदियाँ,
जिन्हें देखकर, जिनकी मीठी ध्वनियाँ सुनकर,
मुझे ज्ञात होता जैसे यह प्रिय पृथ्वी तो,
अभी-अभी ही आई है, इसमें चिंता को
और मरण को, स्थान अभी कैसे हो सकता है ?