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05:09, 14 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण
विदा लेते हुए
रात ने उषा से कहा-
कल यहीं, अच्छा ।
उड़ती हुई उषा ने
सूरज से सुना-
कल यहीं, अच्छा !
आंखों से ओझल होते
सूरज से
अंत में सांझ ने वचन लिया
कल यहीं, अच्छा !
अनुवाद : मोहन आलोक