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"गुमशुदा / मंगलेश डबराल" के अवतरणों में अंतर

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शहर के पेशाबघरों और अन्य लोकप्रिय जगहों में
 
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उन गुमशुदा लोगों की तलाश के पोस्टर
 
उन गुमशुदा लोगों की तलाश के पोस्टर
 
 
अब भी चिपके दिखते हैं
 
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जो कई बरस पहले दस बारह साल की उम्र में
 
जो कई बरस पहले दस बारह साल की उम्र में
 
 
बिना बताए घरों से निकले थे
 
बिना बताए घरों से निकले थे
 
 
पोस्टरों के अनुसार उनका क़द मँझोला है
 
पोस्टरों के अनुसार उनका क़द मँझोला है
 
 
रंग गोरा नहीं गेहुँआ या साँवला है
 
रंग गोरा नहीं गेहुँआ या साँवला है
 
 
हवाई चप्पल पहने हैं
 
हवाई चप्पल पहने हैं
 
 
चेहरे पर किसी चोट का निशान है
 
चेहरे पर किसी चोट का निशान है
 
 
और उनकी माँएँ उनके बगै़र रोती रह्ती हैं
 
और उनकी माँएँ उनके बगै़र रोती रह्ती हैं
 
 
पोस्टरों के अन्त में यह आश्वासन भी रहता है
 
पोस्टरों के अन्त में यह आश्वासन भी रहता है
 
 
कि लापता की ख़बर देने वाले को मिलेगा
 
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यथासंभव उचित ईनाम
 
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तब भी वे किसी की पहचान में नहीं आते
 
तब भी वे किसी की पहचान में नहीं आते
 
 
पोस्टरों में छपी धुँधँली तस्वीरों से
 
पोस्टरों में छपी धुँधँली तस्वीरों से
 
 
उनका हुलिया नहीं मिलता
 
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उनकी शुरुआती उदासी पर
 
उनकी शुरुआती उदासी पर
 
 
अब तकलीफ़ें झेलने की ताब है
 
अब तकलीफ़ें झेलने की ताब है
 
 
शहर के मौसम के हिसाब से बदलते गए हैं उनके चेहरे
 
शहर के मौसम के हिसाब से बदलते गए हैं उनके चेहरे
 
 
कम खाते कम सोते कम बोलते
 
कम खाते कम सोते कम बोलते
 
 
लगातार अपने पते बदलते
 
लगातार अपने पते बदलते
 
 
सरल और कठिन दिनों को एक जैसा बिताते
 
सरल और कठिन दिनों को एक जैसा बिताते
 
 
अब वे एक दूसरी ही दुनिया में हैं
 
अब वे एक दूसरी ही दुनिया में हैं
 
 
कुछ कुतूहल के साथ
 
कुछ कुतूहल के साथ
 
 
अपनी गुमशुदगी के पोस्टर देखते हुए
 
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जिन्हें उनके माता पिता जब तब छ्पवाते रहते हैं
 
जिन्हें उनके माता पिता जब तब छ्पवाते रहते हैं
 
 
जिनमें अब भी दस या बारह
 
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लिखी होती है उनकी उम्र ।
 
लिखी होती है उनकी उम्र ।
  
 
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'''रचनाकाल : 1993'''
(1993)
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15:56, 18 जून 2020 के समय का अवतरण

शहर के पेशाबघरों और अन्य लोकप्रिय जगहों में
उन गुमशुदा लोगों की तलाश के पोस्टर
अब भी चिपके दिखते हैं
जो कई बरस पहले दस बारह साल की उम्र में
बिना बताए घरों से निकले थे
पोस्टरों के अनुसार उनका क़द मँझोला है
रंग गोरा नहीं गेहुँआ या साँवला है
हवाई चप्पल पहने हैं
चेहरे पर किसी चोट का निशान है
और उनकी माँएँ उनके बगै़र रोती रह्ती हैं
पोस्टरों के अन्त में यह आश्वासन भी रहता है
कि लापता की ख़बर देने वाले को मिलेगा
यथासंभव उचित ईनाम

तब भी वे किसी की पहचान में नहीं आते
पोस्टरों में छपी धुँधँली तस्वीरों से
उनका हुलिया नहीं मिलता
उनकी शुरुआती उदासी पर
अब तकलीफ़ें झेलने की ताब है
शहर के मौसम के हिसाब से बदलते गए हैं उनके चेहरे
कम खाते कम सोते कम बोलते
लगातार अपने पते बदलते
सरल और कठिन दिनों को एक जैसा बिताते
अब वे एक दूसरी ही दुनिया में हैं
कुछ कुतूहल के साथ
अपनी गुमशुदगी के पोस्टर देखते हुए
जिन्हें उनके माता पिता जब तब छ्पवाते रहते हैं
जिनमें अब भी दस या बारह
लिखी होती है उनकी उम्र ।

रचनाकाल : 1993