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(येलेना बोन्दोरेवा के लिए)
  
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तुम फूल नहीं हो येलेना
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गुलदस्ता हो सितारा नहीं हो
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झपकी नहीं हो तुम
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शब्द नहीं हो
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आठों पहर
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अमरूद का पेड़ हो तुम
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घर के आँगन में लगा
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कुँआ हो घर का
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खेत हो क्यारी नहीं
  
जगा रहता है
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युवाओं का बचपन हो तुम
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बूढ़ों की जवानी
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तुम वह आत्मीयता हो
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जिसका नहीं कोई सानी
  
यह शहर
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(1993)
 
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आतुर नदी का प्रवाह
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कराहते सागर की लहर
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करता है
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मुझे प्रमुदित
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और बरसाता है
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कहर
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रूप व राग की भूमि है
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कलयुगी सभ्यता का महर
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अज़दहा है
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राजसत्ता का
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कभी अमृत
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तो कभी ज़हर
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(2000)
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13:15, 17 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

(येलेना बोन्दोरेवा के लिए)

तुम फूल नहीं हो येलेना
गुलदस्ता हो सितारा नहीं हो
आसमान हो सितारों भरा
बादल नहीं हो
वर्षा हो बूँद नहीं हो
फुहार हो जल की

झपकी नहीं हो तुम
नींद हो भरी पूरी
सिर्फ़ मुस्कान नहीं हो
हँसी हो खिलखिलाती
शब्द नहीं हो
कविता हो कहानी हो गीत हो कोई

अमरूद का पेड़ हो तुम
घर के आँगन में लगा
कुँआ हो घर का
खेत हो क्यारी नहीं

युवाओं का बचपन हो तुम
बूढ़ों की जवानी
तुम वह आत्मीयता हो
जिसका नहीं कोई सानी

(1993)