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+ | '''हिन्दी में अनुवाद : उमेश कुमार सिंह चौहान''' | ||
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02:34, 12 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
आग में कूदकर मरने के लिए या
आग खाने की लालसा में
आग की ओर समूह में
दौड़े जा रहे हैं छोटे पतंगे?
आग में कूद कर मर जाने ले लिए ही
दुनिया में बुराइयाँ होती हैं क्या?
पैदा होते ही
भर गई निराशा कैसे?
खाने के लिए ही है यह जलती हुई आग
यदि तुम यही सोच रहे हो
तो फिर निखिलेश्वर को छोड़कर
तुमसे कुछ भी कहना नहीं।
विवेक पैदा होने तक अब हर कोई
बिना पंख वाला ही बना रहे।
हिन्दी में अनुवाद : उमेश कुमार सिंह चौहान