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कामना / विजेन्द्र
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15:57, 16 फ़रवरी 2011
जब सब छोड़ कर चले गए
वृक्ष मेरे मित्र बने रहे
खुली हवा... निरभ्र
अकाश
आकाश
में
साँस लेत रहा
निखरी धूप में
अनिल जनविजय
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