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"अपना नहीं कोई है / रमा द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर

 
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गिरती है पर्वतों से ,सरपट वो दौडती है,<br>
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प्रिय से मिलन को देखो पागल हुई हुई है।<br><br>
      प्रिय से मिलन को देखो पागल हुई हुई है।<br><br>
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बदरी की बिजुरिया सी, अम्बर की दुलहनियां सी,<br>
 
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बरसी है जब उमड  कर सतरंग हुई हुई है।<br><br>  
      बदरी की बिजुरिया सी, अम्बर की दुलहनियां सी,<br>
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चन्दा की चांदनी सी,तारों की झिलमिली सी,<br>
      बरसी है जब उमड  कर सतरंग हुई हुई है।<br><br>  
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उतरी है जब जमीं पर शबनम हुई हुई है।<br><br>
 
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बाहों में प्रिय के आके हर दर्द भूल जाती,<br>
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दिल में समायी ऐसे सरगम हुई हुई है।<br><br>
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इक बूंद के लिए ही बनती है वो दीवानी,<br>
 
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इक बूंद जब मिली तो मुक्ता हुई हुई है।<br><br>
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14:24, 15 जून 2007 के समय का अवतरण

सूना है मन का अंगना ,अपना नहीं कोई है,
हर सांस डगमगाती सी बेसुध हुई हुई है।

गिरती है पर्वतों से ,सरपट वो दौडती है,
प्रिय से मिलन को देखो पागल हुई हुई है।

बदरी की बिजुरिया सी, अम्बर की दुलहनियां सी,
बरसी है जब उमड कर सतरंग हुई हुई है।

चन्दा की चांदनी सी,तारों की झिलमिली सी,
उतरी है जब जमीं पर शबनम हुई हुई है।

बाहों में प्रिय के आके हर दर्द भूल जाती,
दिल में समायी ऐसे सरगम हुई हुई है।

इक बूंद के लिए ही बनती है वो दीवानी,
इक बूंद जब मिली तो मुक्ता हुई हुई है।