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"तोड़े नयी जमीन/ शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
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एक करें यह काम, | एक करें यह काम, | ||
अंधियारे के माथे पर लिख दें | अंधियारे के माथे पर लिख दें | ||
सूरज का नाम | सूरज का नाम | ||
− | + | तोड़ें नयी ज़मीन न ऊसर | |
बंजर एक बचे, | बंजर एक बचे, | ||
प्रगति वधू अपने हाथों में | प्रगति वधू अपने हाथों में | ||
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तोड़ें दंभ इन्द्र का मिलकर | तोड़ें दंभ इन्द्र का मिलकर | ||
− | सबकी प्यास हरें | + | सबकी प्यास हरें , |
द्वेष, घृणा, कुंठा, पीड़ा, का | द्वेष, घृणा, कुंठा, पीड़ा, का | ||
− | दिन-दिन | + | दिन-दिन ह्रास करें , |
धरती, अम्बर, पर्वत, घाटी | धरती, अम्बर, पर्वत, घाटी | ||
सबको कर अभिराम । | सबको कर अभिराम । | ||
जोड़े सकल समाज हृदय में | जोड़े सकल समाज हृदय में | ||
− | सबके प्रेम जगे, | + | सबके प्रेम जगे, |
+ | पथरीली चट्टानों पर भी | ||
कोमल दूब उगे, | कोमल दूब उगे, | ||
दुख, चिन्ता, भय जीत समय पर | दुख, चिन्ता, भय जीत समय पर | ||
− | अपनी कसें लगाम । | + | अपनी कसें लगाम । |
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अंधियारे के माथे पर लिख दें | अंधियारे के माथे पर लिख दें | ||
सूरज का नाम । | सूरज का नाम । | ||
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21:33, 13 मार्च 2012 के समय का अवतरण
आओं हम सब मिल आपस में
एक करें यह काम,
अंधियारे के माथे पर लिख दें
सूरज का नाम
तोड़ें नयी ज़मीन न ऊसर
बंजर एक बचे,
प्रगति वधू अपने हाथों में
मेंहदी रोज़ रचे,
कर्मयज्ञ के हवन कुंड़ में
आहुति दे अविराम ।
तोड़ें दंभ इन्द्र का मिलकर
सबकी प्यास हरें ,
द्वेष, घृणा, कुंठा, पीड़ा, का
दिन-दिन ह्रास करें ,
धरती, अम्बर, पर्वत, घाटी
सबको कर अभिराम ।
जोड़े सकल समाज हृदय में
सबके प्रेम जगे,
पथरीली चट्टानों पर भी
कोमल दूब उगे,
दुख, चिन्ता, भय जीत समय पर
अपनी कसें लगाम ।
अंधियारे के माथे पर लिख दें
सूरज का नाम ।