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+ | यह तो तुम्हारा अधिकार था और हमारा कर्तव्य ! | ||
+ | पीढियों का ऋण चढा था जो हम पर , | ||
+ | उतार, दिया तुमने आनन्द और सुख ! | ||
+ | आभार तुम्हारा ! | ||
+ | आत्मज मेरे ! | ||
+ | हमारा अस्तित्व व्याप्त रहेगा , | ||
+ | जहाँ तक जायेगा तुम्हारा विस्तार ! | ||
+ | तुम्हारा विकसता व्यक्तित्व सँवारने में, | ||
+ | चूक गये होंगे कितनी बार | ||
+ | आड़े आ गई होंगी हमारी सीमायें ! | ||
+ | पर तुम्हारे लिये खुली हैं आ-क्षितिज दिशायें ! | ||
+ | विस्तृत आकाश में उड़ान भरते | ||
+ | कोई द्विविधा मन में सिर न उठाये | ||
+ | कोई आशंका व्याप न जाये ! | ||
+ | चलना है बहुत आगे तक , | ||
+ | समर्थ हो तुम ! | ||
+ | शान्त और प्रसन्न मन से | ||
+ | तुम्हें मुक्त कर देना चाहती हूँ अब | ||
+ | और स्वयं को भी - | ||
+ | हर बंधन से, भार से, अपेक्षा और अधिकार से, | ||
+ | कि निश्तिन्त और निर्द्वंद्व रहें हम ! | ||
+ | जी सकें सहज जीवन, अपने अपने ढंग से ! | ||
+ | क्योंकि प्यार बाँधता नहीं मुक्त करता है | ||
+ | और तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ मैं ! | ||
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08:52, 28 फ़रवरी 2011 के समय का अवतरण
कोई एहसान नहीं किया हमने तुम पर !
यह तो तुम्हारा अधिकार था और हमारा कर्तव्य !
पीढियों का ऋण चढा था जो हम पर ,
उतार, दिया तुमने आनन्द और सुख !
आभार तुम्हारा !
आत्मज मेरे !
हमारा अस्तित्व व्याप्त रहेगा ,
जहाँ तक जायेगा तुम्हारा विस्तार !
तुम्हारा विकसता व्यक्तित्व सँवारने में,
चूक गये होंगे कितनी बार
आड़े आ गई होंगी हमारी सीमायें !
पर तुम्हारे लिये खुली हैं आ-क्षितिज दिशायें !
विस्तृत आकाश में उड़ान भरते
कोई द्विविधा मन में सिर न उठाये
कोई आशंका व्याप न जाये !
चलना है बहुत आगे तक ,
समर्थ हो तुम !
शान्त और प्रसन्न मन से
तुम्हें मुक्त कर देना चाहती हूँ अब
और स्वयं को भी -
हर बंधन से, भार से, अपेक्षा और अधिकार से,
कि निश्तिन्त और निर्द्वंद्व रहें हम !
जी सकें सहज जीवन, अपने अपने ढंग से !
क्योंकि प्यार बाँधता नहीं मुक्त करता है
और तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ मैं !