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रूप की इस सुंदर नगरी से, भाग रे शाइर भाग | रूप की इस सुंदर नगरी से, भाग रे शाइर भाग | ||
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13:02, 1 मार्च 2011 के समय का अवतरण
देख के कर्रोफ़र दौलत की तेरा जी ललचाय
सूँघ के मुश्की ज़ुल्फ़ों की बू नींद-सी तुझ को आए
जैसे बे-लंगर की किश्ती लहरों में बोलाय
मन की मौज में तेरी नीयत यूँ है डावाँडोल
तोल अपने को तोल,
यह गेसू<ref>बालों की लटें</ref>, यह बिखरे गेसू, नाग हैं, काले नाग
इन तिरछी-तिरछी नज़रों को लाग है, तुझसे लाग
रूप की इस सुंदर नगरी से, भाग रे शाइर भाग
तुझसे तुझको छीन रहे हैं, यह परियों के गोल
तोल अपने को तोल ।
शब्दार्थ
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