"कल्याणी / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर
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कल्याणी ! कल्याणी ! | कल्याणी ! कल्याणी ! | ||
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आया है मेरा मंझला भाई, | आया है मेरा मंझला भाई, | ||
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उसी से होगी तेरी शादी कल्याणी । | उसी से होगी तेरी शादी कल्याणी । | ||
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देख ले लड़का, है न पसन्द ? | देख ले लड़का, है न पसन्द ? | ||
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हँसती है छोटी बहू | हँसती है छोटी बहू | ||
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और हँसता हुआ भाई रगड़ता है गमछे से पीठ-- | और हँसता हुआ भाई रगड़ता है गमछे से पीठ-- | ||
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"हाँ, कल्याणी !" | "हाँ, कल्याणी !" | ||
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टप-टप देह से चूता है पानी | टप-टप देह से चूता है पानी | ||
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कल्याणी बैठी है चूल्हे के पास | कल्याणी बैठी है चूल्हे के पास | ||
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भींगी लकड़ी से उठ रहा है गाढ़ा धुँआ | भींगी लकड़ी से उठ रहा है गाढ़ा धुँआ | ||
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फिर भी इतनी शान्त और स्थिर | फिर भी इतनी शान्त और स्थिर | ||
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जैसे धूल भरे पत्तों के बीच खीरे का पीला फूल | जैसे धूल भरे पत्तों के बीच खीरे का पीला फूल | ||
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ताकता एकटक आकाश । | ताकता एकटक आकाश । | ||
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जब भी आया कोई भाई किसी बहू का | जब भी आया कोई भाई किसी बहू का | ||
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यही होगा | यही होगा | ||
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सब से होगा कल्याणी का ब्याह तय | सब से होगा कल्याणी का ब्याह तय | ||
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मज़ाक का रिश्ता जो ठहरा-- | मज़ाक का रिश्ता जो ठहरा-- | ||
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बचपन से रह गई इस घर में कल्याणी | बचपन से रह गई इस घर में कल्याणी | ||
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बच्चा खेलाती, खाना बनाती, सोहर गाती, बेना डोलाती । | बच्चा खेलाती, खाना बनाती, सोहर गाती, बेना डोलाती । | ||
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कल्याणी ने लड़के को देखा किनारे से | कल्याणी ने लड़के को देखा किनारे से | ||
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और तन तन सिहरी | और तन तन सिहरी | ||
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जैसे आकर खड़ा हुआ बीच दोपहर | जैसे आकर खड़ा हुआ बीच दोपहर | ||
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कोई बटोही जवान । | कोई बटोही जवान । | ||
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और वृक्ष की पत्तियाँ सिहरीं | और वृक्ष की पत्तियाँ सिहरीं | ||
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कल्याणी ! कल्याणी ! | कल्याणी ! कल्याणी ! | ||
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कल्याणी कुछ नहीं बोलती | कल्याणी कुछ नहीं बोलती | ||
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कल्याणी कुछ नहीं बोलती | कल्याणी कुछ नहीं बोलती | ||
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क्या सच क्या मज़ाक, | क्या सच क्या मज़ाक, | ||
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कल्याणी ? | कल्याणी ? | ||
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13:13, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
कल्याणी ! कल्याणी !
आया है मेरा मंझला भाई,
उसी से होगी तेरी शादी कल्याणी ।
देख ले लड़का, है न पसन्द ?
हँसती है छोटी बहू
और हँसता हुआ भाई रगड़ता है गमछे से पीठ--
"हाँ, कल्याणी !"
टप-टप देह से चूता है पानी
कल्याणी बैठी है चूल्हे के पास
भींगी लकड़ी से उठ रहा है गाढ़ा धुँआ
फिर भी इतनी शान्त और स्थिर
जैसे धूल भरे पत्तों के बीच खीरे का पीला फूल
ताकता एकटक आकाश ।
जब भी आया कोई भाई किसी बहू का
यही होगा
सब से होगा कल्याणी का ब्याह तय
मज़ाक का रिश्ता जो ठहरा--
बचपन से रह गई इस घर में कल्याणी
बच्चा खेलाती, खाना बनाती, सोहर गाती, बेना डोलाती ।
कल्याणी ने लड़के को देखा किनारे से
और तन तन सिहरी
जैसे आकर खड़ा हुआ बीच दोपहर
कोई बटोही जवान ।
और वृक्ष की पत्तियाँ सिहरीं
कल्याणी ! कल्याणी !
कल्याणी कुछ नहीं बोलती
कल्याणी कुछ नहीं बोलती
क्या सच क्या मज़ाक,
कल्याणी ?