भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अब अगर आओ तो / जावेद अख़्तर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=< जावेद अख़्तर > }} अब अगर आओ तो जाने के लिए मत आना सिर्फ...)
 
छो
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
+
|रचनाकार=जावेद अख़्तर
|रचनाकार=< जावेद अख़्तर >
+
 
+
 
}}
 
}}
 
+
[[Category:ग़ज़ल]]
 
+
<poem>
 
अब अगर आओ तो जाने के लिए मत आना
 
अब अगर आओ तो जाने के लिए मत आना
 
+
सिर्फ एहसान जताने के लिए मत आना
सिर्फ अहसान जताने के लिए मत आना
+
  
 
मैंने पलकों पे तमन्‍नाएँ सजा रखी हैं
 
मैंने पलकों पे तमन्‍नाएँ सजा रखी हैं
 
 
दिल में उम्‍मीद की सौ शम्‍मे जला रखी हैं
 
दिल में उम्‍मीद की सौ शम्‍मे जला रखी हैं
 
+
ये हसीं शम्‍मे बुझाने के लिए मत आना
ये हँसीं शम्‍मे बुझाने के लिए मत आना
+
  
 
प्‍यार की आग में जंजीरें पिघल सकती हैं
 
प्‍यार की आग में जंजीरें पिघल सकती हैं
 
+
चाहने वालों की तक़दीरें बदल सकती हैं
चाहने वालों की तक़बीरें बदल सकती हैं
+
 
+
 
तुम हो बेबस ये बताने के लिए मत आना
 
तुम हो बेबस ये बताने के लिए मत आना
  
 
अब तुम आना जो तुम्‍हें मुझसे मुहब्‍बत है कोई
 
अब तुम आना जो तुम्‍हें मुझसे मुहब्‍बत है कोई
 
 
मुझसे मिलने की अगर तुमको भी चाहत है कोई
 
मुझसे मिलने की अगर तुमको भी चाहत है कोई
 
+
तुम कोई रस्‍म निभाने के लिए मत आना
तुम कांई रस्‍म निभाने के लिए मत आना
+
</poem>

18:57, 30 मार्च 2010 के समय का अवतरण

अब अगर आओ तो जाने के लिए मत आना
सिर्फ एहसान जताने के लिए मत आना

मैंने पलकों पे तमन्‍नाएँ सजा रखी हैं
दिल में उम्‍मीद की सौ शम्‍मे जला रखी हैं
ये हसीं शम्‍मे बुझाने के लिए मत आना

प्‍यार की आग में जंजीरें पिघल सकती हैं
चाहने वालों की तक़दीरें बदल सकती हैं
तुम हो बेबस ये बताने के लिए मत आना

अब तुम आना जो तुम्‍हें मुझसे मुहब्‍बत है कोई
मुझसे मिलने की अगर तुमको भी चाहत है कोई
तुम कोई रस्‍म निभाने के लिए मत आना