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"विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 4" के अवतरणों में अंतर

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<poem>
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'''पद 31 से 40 तक'''
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(31)
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जय ताकिहै तमकि ताकी ओर को।
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जाको है सब भांति भरोसो कपि केसरी-किसोरको।।
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जन-रंजन अरिगन-गंजन मुख-भंजन खल बरजोरको।
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बेद- पुरान-प्रगट पुरूषाराि सकल-सुभट -सिरमोर केा।।
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उथपे-थपन, थपे उथपन पन, बिबुधबृंद बँदिछोर को।
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जलधि लाँधि दहि लंे प्रबल बल दलन निसाचर घोर को।।
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जाको बालबिनोद समुझि जिय डरत दिाकर भोरको।
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जाकी चिबुक-चोट चूरन किय रद-मद कुलिस कठोरको।।
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लोकपाल अनुकूल बिलोकिवो चहत बिलोचन-कोरको।
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सदा अभय, जय, मुद-मंगलमय जो सेवक रनरोर को।।
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भगत-कामतरू नाम राम परिपूरन चंद चकोरको।
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तुलसी फल चारों करतल जस गावत गईबहोरको।।
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(32)
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ऐसी तोहि न बूझिये हनुमान हठीले।
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साहेब कहूँ न रामसे, तोसे न उसीले।।
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तेरे देखत सिंहके सिसु मेंढक लीले।
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जानक हौं कलि तेरेऊ मन गुनगन कीले।।
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हाँक सुनत दसकंधके भये बंधन ढीले।
+
सो बल गयो किधौं  भये अब गरबगहीले।।
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सेवकको परदा फटे तू समरथ सीले।
+
अधिक आपुते आपुनो सुनि मान सही ले।।
+
साँसति तुलसिदासकी सुनि सुजस तुही ले।
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तिहूँकाल तिनको भलौ जे राम-रँगीले।।
+
 
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(37)
+
 
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लाल लाड़िले लखन, हित हौ जनके।
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सुमिरे संकटहारी, सकल सुमंगलकारी,
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पालक कृपालु अपने पनके।1।
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धरनी-धरनहार भंजन-भुवनभार,
+
अवतार साहसी सहसफनके।।
+
सत्यसंध, सत्यब्रत, परम धरमरत,
+
निरमल करम बचन अरू मनके।2।
+
रूपके निधान, धनु-बान पानि,
+
तून कटि, महाबीर बिदित, जितैया बड़े रनके।।
+
सेवक-सुख-दायक, सबल, सब लायक,
+
गायक जानकीनाथ गुनगनके।3।
+
भावते भरतके, सुमित्रा-सीताके दुलारे,
+
चातक चतुर राम स्याम घनके।।
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बल्लभ उरमिलाके, सुलभ सनेहबस,
+
धनी धन तुलसीसे निरधनके।4।
+
 
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(38)
+
 
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जयति
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लक्ष्मणानंत भगवंत भुधर,
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भुजग- राज, भुवनेश, भुभारहारी।
+
प्रलय-पावक-महाज्वालमाला-वमन, शमन-संताप लीलावतारी।1। ज
+
यति दाशरथि, समर ,समरथ, सुमि़त्रा-सुवनत्यंजनी-गर्भ-अंभोति
+
+
(39)
+
 
+
जयति
+
भूमिजा-रमण-पदकंज-मकरंद-रस-
+
रिसक-मधुकर भरत भूरिभागी।
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भुवन-भूषण, भानुवंश-भूषण, भूमिपाल-
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मणि रामचंद्रानुरागागी।1।
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जयति विबुधेश-धनदादि-दुर्लभ-महा-
+
राज संम्रा-सुख-पद-विरागी।
+
खड्ग-धाराव्रती-प्रथमरेखा प्रकट
+
शुद्धमति- युवति पति-प्रेमपागी।2।
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जयति निरूपाधि-भक्तिभाव-यंत्रित-हृदय,
+
बंधु-हित चित्रकूटाद्रि-चारी।
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पादुका-नृप-सचिव, पुहुमि-पालक परम
+
धरम-धुर-धीर, वरवीर भारी।3।
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जयति संजीवनी-समय-संकट हनूमान
+
धनुबान-महिमा बखानी।
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बाहुबल बिपुल परमिति पराक्रम अतुल,
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गूढ़ गति जानकी-जानि जानी।4।
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जयति रण-अजिर गन्धर्व-गण-गर्वहर,
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फिर किये रामगुणगाथ-गाता।
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माण्डवी-चित्त-चातक-नवांबुद-बरन,
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सरन तुलसीदास अभय दाता।5।
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</poem>
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19:50, 16 जून 2012 के समय का अवतरण